बहुत खाली सी है ज़िन्दगी ,
बहुत अकेलापन है ,
बहुत तड़प है ,
अक्सर आँखे भर आती हैं ,
कोई नहीं है ,
कोई भी तो नहीं है ,
सब सूना है ,
मैं तन्हा हूँ ,
दिल की अधूरी ख्वाहिश ,
लगता था ये सिर्फ पागलपन है ,
मगर नहीं ,
"प्यार" शायद इंसान की ज़रुरत है ,
जो मेरी किस्मत में नहीं ,
फिर ये ज़िन्दगी क्यों है ?
ये दुनिया क्यों है ?
ये रिश्ते क्यों होते हैं ?
जब प्यार ही नहीं तो कुछ भी नहीं ,
कोई तो हो कहीं ,
जो गले लगा ले ,
अपना बना ले ,
मेरा होना जिसके लिए मायने रखता हो ,
कोई तो दिल से मुझे भी प्यार करता हो |
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